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Raksha Bandhan

Raksha Bandhan

रक्षाबंधन भारत का एक पारंपरिक त्योहार है जो भारत में सभ्यता के शुरुआत से ही मनाया जाता है कुछ तथ्य को यह बताते हैं कि यह आज से 5000 से 6000 साल पहले भी भारत में मनाया जाता था पुराणों में भी इस त्योहार को मनाने के प्रमाण मिले हैं यह भारत के लगभग सभी हिस्सों में अपने अपने तरीके से अलग-अलग रूप में मनाया जाता था इसके बारे में अनेक कहानियां प्रचलित हैं जिनमें से कुछ कहानी नीचे दी गई है।

 रानी कर्मवती और शासक हिमायू की कहानी

आजकल जो सबसे प्रचलित कहानी रक्षाबंधन के त्यौहार के संबंध में है वह रानी कर्मवती और राजा हिमायू के संबंध में है रानी कर्मवती एक राजपूत शासक की पत्नी थी  जिसने हिमायू को अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए  राखी भेजी थी  उसके राज्य पर गुजरात के शासक बहादुरशाह की बुरी नजर थी  बहादुरशाह के आक्रमण का अनुमान लगते ही रानी कर्मवती ने अपनी सुरक्षा अपने राज्य की सुरक्षा के लिए  हिमायू से  सहायता मांगी  और  राखी भेजकर उसे अपना भाई बनाया था  राखी के मिलते ही  हिमायू ने भी राखी का धर्म निभाते हुए  रानी कर्मवती के राज्य की ओर अपनी सेना के साथ प्रस्थान किया लेकिन उसके पहुंचने से पहले ही रानी कर्मवती वीरगति को प्राप्त हुई  तब हिमायू ने गुजरात के शासक बहादुरशाह पर आक्रमण कर दिया  और उसे उस राज्य से निकाल कर बाहर कर दिया ।

 विश्व विजेता सिकंदर और राजा पुरु की कहानी

दुनिया के विश्व विजेता शासक सिकंदर और राजा पुरु  के संबंध में भी एक कहानी प्रचलित है कहा जाता है कि  राजा पुरु की सेना  एक वीर सेना थी  तथा राजापुर भी एक  वीर शासक था  जब सिकंदर ने भारत पर आक्रमण करने के बारे में निश्चय कर लिया  तो उसकी पत्नी को बहुत ही डर लगा  उसे लगा कि सिकंदर युद्ध में मारा भी जा सकता है  तब  सिकंदर की पत्नी ने  अपने पति की रक्षा के वचन के लिए राजा पुरू को राखी भेजी थी इस राखी के सम्मान के खातिर ही राजा पुरु ने युद्ध में  जब सिकंदर सामने आ गया तो उसे जान से नहीं मारा था जिस कारण राजा पुरु की उस युद्ध में हार हुई ।

 कृष्ण और द्रोपदी की कहानी

 यह कहानी उस समय की है जब भगवान कृष्ण ने  शिशुपाल के साथ युद्ध किया  इस युद्ध में  कृष्ण ने शिशुपाल को मार दिया  शिशुपाल कृष्ण का रिश्ते से भाई लगता था  और उनकी बुआ का लड़का था  शिशुपाल को मारने के बाद श्रीकृष्ण को  बहुत ही ज्यादा बुरा लगा  इस युद्ध में  उन्हें खून बह रहा था  लेकिन उन्होंने उसे रोकने की कोशिश नहीं की  क्योंकि वह शिशुपाल का वध करने के बाद बहुत ज्यादा व्यथित हो गए थे  इस खून को बहता हुआ देखकर  द्रोपदी ने  अपनी साड़ी को फाड़ कर  खून को बहते हुए  से रोक कर उस पर पट्टी बांध दी थी जिस पट्टी के बांधने के बाद  द्रोपदी को कृष्ण ने अपनी बहन बना लिया था  और  किसी भी जरूरत के वक्त उनकी मदद का वचन दिया था  जब द्रोपदी को  कौरवो ने भरी सभा में चीरहरण करने की कोशिश की  तब द्रोपदी ने  भगवान श्रीकृष्ण को याद करते हुए उसी वचन की याद दिलाई  भगवान श्री कृष्ण ने  अपना वचन निभाते हुए द्रोपदी की साड़ी इतनी लंबी कर दी  की ओर से  खींचते खींचते पूरा राजभवन भर गया लेकिन द्रोपदी की साड़ी खत्म नहीं हुई  और उन्होंने द्रोपदी की रक्षा की।

 बलि और देवी लक्ष्मी की कहानी

राजा बलि भगवान विष्णु के  अनन्य भक्त थे  इनका राज्य केरल में था  लेकिन जब देवताओं ने  भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि उन्हें पाताललोक भेज दिया जाए  तब भगवान विष्णु ने छद्मवेश धारण कर  उनसे तीनो लोक छीन लिए  और अंत में उन्हें पाताल लोक में राज करने के लिए भेज दिया तब भगवान  विष्णु ने महाबली की इच्छा पूरी करने का वचन दिया  और भगवान महाबली ने  भगवान विष्णु से अपना द्वारपाल बनने की इच्छा प्रकट की  जिस कारण भगवान विष्णु  महाबली के राज्य की रक्षा करने के लिए  अपना लोक शिरसागर छोड़कर  महाबली के राज्य में रहने लगे  जब काफी दिन हो गए तब लक्ष्मी जी को इसकी चिंता हुई  तो भगवान विष्णु को लेने के लिए उन्होंने महाबली के राज्य में प्रवेश किया  उन्होंने महाबली को  उपहार स्वरूप राखी भेंट की तब महाबली ने राखी  के बदले  लक्ष्मी को अपनी बहन मानते हुए  उनसे उनकी इच्छा पूछी  तब लक्ष्मी जी ने महाबली से भगवान विष्णु को मांग लिया  इस प्रकार  लक्ष्मी जी ने  भगवान विष्णु को  वापस छीरसागर ले जाने की आज्ञा प्राप्त की ।

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