कर्जमाफी और किसान
भारत में लगभग 70% जनसंख्या कृषि पर आधारित है और भारत में कृषि पर आधारित जनसंख्या की स्थिति कुछ ज्यादा ही खराब है अधिकांश है यह कहा जाता है कि कृषि में जो लागत लगाई जाती है उस पर जो फसल पैदा होती है उसका मूल्य लागत से कम ही बैठता है इस प्रकार आज के समय में खेती एक घाटे का सौदा साबित हो रहा है
हाल के दिनों में किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं ने इस दिशा में सोचने के लिए मजबूर किया है कि कैसे पूरे देश को खाना खिलाने वाला किसान आज खुद भूखे पेट सो रहा है और आत्महत्या करने को विवश हुआ है सरकार किसानों की कर्जमाफी कर तत्काल रुप से तो उन्हें कुछ राहत प्रदान कर सकती है लेकिन लंबे समय के लिए इस दिशा में काम करना जरूरी है उत्तर प्रदेश सरकार ने जब से किसानों का कर्ज माफ किया है तब से अन्य राज्यों में भी इसकी मांग बड़े जोर से उठने लगी है आज कम से कम 6 से 7 राज्यों में किसान आंदोलन सिर्फ कर्ज माफी के लिए ही चल रहे हैं अब राज्य सरकारों के लिए खजाने को कंट्रोल करना एक सिरदर्द साबित हो रहा है साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि कर्जमाफी एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है और क्योंकि यह किसानों को सीधे फायदा पहुंचाता है अतः किसान अब इस लालच में आ चुके हैं कि वह कर्ज माफी के लिए किसी भी राजनीतिक पार्टी का हाथ थाम आंदोलन करने को अग्रसर हो जाते हैं कर्जमाफी राज्य सरकार कर तो देती हैं लेकिन इससे अन्य भी दिक्कतें खड़ी होती हैं कई बैंकरों ने इस पर सवाल उठाए हैं क्योंकि इससे किसान लालच में आकर कर्ज भरता ही नहीं है और वह कर्ज बढ़ता जाता है जो बैंकों के लिए सिरदर्द बन जाता है साथ ही इस पर समाज के अन्य हिस्से भी सवाल उठाते हैं कि क्यों सिर्फ किसानों की ही कर्जमाफी हो बाकी की नहीं
यह सब बातें अपनी जगह ठीक हैं लेकिन यह भी मानना ही पड़ेगा कि किसानो की हालत आज देश में बहुत अच्छे नहीं हैं जबकि भारत के आजाद होने के समय से ही सभी सरकारें इसके लिए काम कर रही हैं सरकार कोई भी हो वह किसानों से बड़े अच्छे वादे करके ही आती है लेकिन किसानों के हालात आज ऐसे हैं कि उसे आत्महत्या करने को मजबूर होना पड़ रहा है इसके कुछ पहलुओं पर यहां गौर करते हैं
भारत में गांव सदियों से एक आत्मनिर्भर इकाई रहे हैं। भारत में तमाम आक्रमणकारी आए उन्होंने शहरों की शासन व्यवस्था को बदला लेकिन गांव पर इसका असर कभी भी बहुत अधिक नहीं हुआ भारत के गांव की जिंदगी पहले से ही बहुत सरल और सीधी थी गांव की अर्थव्यवस्था का संपर्क शहरी अर्थव्यवस्था से कम था गांव की जनसंख्या कम होती थी और वह खेती करते थे तब सिंचाई के साधन तालाब नदी और झीलें थी आज की तरह बिजली से सिंचाई नहीं होती थी नहीं इंजन और ट्रैक्टर थे जिनका डीजल बाहर से आता हो गांव में खेती बैलों से होती थी गांव में पशु अर्थव्यवस्था के कृषि के बाद दूसरा आधार थे पशु खेती को जोतने तथा पानी को जमीन से खींचकर सिंचाई के लिए उपयोग होते थे और यातायात का साधन भी बैलगाड़ी या पैसा गाड़ी या घोड़ा गाड़ी होती थी इस प्रकार यह भी सभी पशु संचालित वाहन थे इन में प्रयुक्त होने वाली लकड़ी भी गांव में ही मिलती थी इस प्रकार गांव के लोग अपने खाने-पीने आने जाने की सभी वस्तुओं का उत्पादन गांव में ही करते थे गांव में सभी मकान कच्चे होते थे अतः बाहर से कोई ईंट सीमेंट आज सामान नहीं आता था जब बाहर से कोई सामान आता ही नहीं था तो गांव का पैसा बाहर जाने की कोई संभावना ही नहीं थी खेती में जो अनाज पैदा होता था अगले वर्ष के लिए बीज उसी से तैयार किया जाता था पशुओं के गोबर से ही खेत की खाद तैयार होती थी इस प्रकार गांव की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से आत्मनिर्भर थी और गांव को शहरों की अधिक आवश्यकता नहीं थी जीवन सरल था बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षा भी नहीं थी इसी वजह से गांव पूरी तरह से आजाद थे
लेकिन भारत के आजाद होने के बाद इस स्थिति में परिवर्तन आया है और विकास के नाम पर गांव का शहरों से संपर्क जुड़ चुका है गांव की अर्थव्यवस्था अब शहरी अर्थव्यवस्था से एकीकृत हो चुकी है अब गांव में पक्की सड़कें बन चुकी हैं हर घर में ट्रैक्टर मोटरसाइकिल कार आदि वाहन है यह वाहन शहरों की बड़ी कंपनियां बनाती हैं इनमें चलने वाला डीजल बाहर से आता है गांव में बिजली है जिसका उत्पादन बाहर होता है और गांव के लोग इस बिल भरते हैं आज गांव के लोग भी बहुत महत्वाकांक्षी हो चुके हैं बाजारवाद के इस दौर में नए-नए सुख-सुविधाएं अब हर गांव में आपको मिल जाएंगी इस प्रकार गांव की आत्मनिर्भरता अब खत्म हो चुकी है इन सब सुविधाओं के अलावा कुछ अन्य दिक्कतें भी हैं पिछले कुछ दशकों से अब खेती में बीज बाजार से खरीदा हुआ डाला जाता है यह बीच बड़ी बड़ी कंपनियां बनाती हैं इस बीजों को खेती में सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल कर सकते हैं अगली फसल के लिए इसके गुणों में कमी आ जाती है और उत्पादन घट जाता है साथ ही पुराने बीज अब इन विदेशी कंपनियों के चक्कर में खत्म हो चुके हैं और ट्रैक्टर के आ जाने से खेती में यंत्रों का उपयोग बढ़ गया है पशुओं का महत्व खेती से खत्म हो चुका है खेती अब पूरी तरह से बाजारवाद के नीचे पिस रही है खेती में लगने वाली खाद भी किसानों को बाहर से खरीदनी पड़ती है अब खेती की जुताई से लेकर कटाई तक सभी कार्य मशीनों से होते हैं जिनके खर्चे के लिए किसान शहरों या बाजार पर निर्भर है यह सभी परिवर्तन देश में खेती के विकास के नाम पर लाया गया है इसने देश में खेती में मेहनत तो बहुत कम कर दी है लेकिन गांव को पूरी तरह से बाजार के हवाले कर दिया है जिस वजह से गांव का पैसा अब बाजार में चला जाता है यही गांव की गरीबी का मूल कारण है
गांव में जो यह कथित विकास हुआ है वह बड़े देशों के अनुसार हुआ है क्योंकि उन देशो में खेती अधिक है तथा जनसंख्या कम है तो वहां पर यंत्रों की आवश्यकता अधिक है जिससे खेती करना आसान हो जाता है साथ ही उत्पादन बढ़ाने के लिए लाए गए बीज भी वहां पर वह खुद तैयार कर सकते हैं लेकिन भारत में स्थितियां इसके विपरीत हैं भारत में जनसंख्या बहुत अधिक है खेती की जोत बहुत छोटी-छोटी हैं और पिछले कई दशकों से जनसंख्या लगातार बढ़ रही है जिसकी वजह से जोत अत्यधिक छोटी हो गई है इन जूट में यंत्रों से खेती करना तथा महंगे बीज डालना इन किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रहा है इनका उत्पादन जितना होता है उससे अधिक अब मैं लागत आ रही है साथ ही देश में बेरोजगारी अत्यधिक है तो इसके साथ अन्य काम भी नहीं मिल पाते जिससे रोजाना की आवश्यकता को पूरा करने के लिए किसानों को कर्ज लेना पड़ता है कर्ज लेने के लिए मुख्यतः बीज खरीदना बेटी की शादी करना या किसी की बीमारी के इलाज के लिए कर्ज लेना प्रमुख हैं
इन कार्यों को लेने के बाद किसान उन्हें चुका नहीं पाता और यह कर्ज बढ़ता जाता है किसान एक बार कर्ज के जाल में अगर फंस गया तो फिर निकलना मुश्किल हो जाता है और गांव में इज्जत के नाम पर जमीन बेचना या कुछ अन्य छोटा कार्य करना उसके बस में नहीं होता फिर उसे अपने जीवन में मरना या आत्महत्या करना ज्यादा सहज प्रतीत होता है।
अब सरकारों को किसानों को कर्ज देने कर्ज माफ करने का अन्य सुविधाएं देने आदि पर एकीकृत रूप से विचार करना चाहिए किसानों ने लंबे समय से किसान आयोग की मांग रखी हुई है लेकिन किसी भी सरकार ने इसे अब तक पूरा नहीं किया है अब समय आ गया है कि एक स्थाई किसान आयोग बनाया जाए जो किसानों की समस्याओं पर समग्र रूप से विचार करें और उनके स्थाई निदान के लिए कार्य कर सकें
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