चाणक्य नीति. सार भाग 1
पृथ्वी अंतरिक्ष पाताल तीनों लोकों के स्वामी सर्वशक्तिमान परमेश्वर को मैं शीश झुकाकर प्रणाम करके यह ग्रंथ लिखूंगा।.
1. ब्राह्मण का विद्या है राजाओं का बल सेना है वैश्यों का बंधन है और शूद्रों का बल सेवा है
राक्षसों का बल हिंसा है राजाओं का बल दंड देना है स्त्रियों का बल सेवा है विद्वानों का बल क्षमा है
निर्बल का बल राजा है बालक का बल रोना है मूर्ख का बल मौन रहना है और चोर का बल झूठ बोलना है।
2. मनुष्य को प्रतिदिन एक श्लोक या आधा श्लोक या एक पाठ अथवा एक अक्षर का ही स्वाध्याय करना चाहिए और दान अध्ययन आज शुभ कर्मों को करते हुए दिन को सफल बनाना चाहिए दिन को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए।
मनुष्य को दिन भर कोई अच्छा कार्य करना चाहिए जिससे रात को शांतिपूर्वक हो सके उसे वर्ष भर अच्छी तरह से मेहनत करनी चाहिए जिससे सुखपूर्वक रह सकें और अच्छे समय को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए
जब समय अच्छा चल रहा हो तब व्यक्ति को अधिकतम लाभ बटोर लेना चाहिए क्योंकि जब समय अनुकूल ना हो तो उस लाभ से आराम से रहा जा सके और समय व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए
3.कैसे पृथ्वी स्थित है सूर्य सत्य केबल से पता है सत्य से बायो बहती है इस संसार में सब कुछ सत्य से ही स्थित है
संसार में सिर्फ सत्य ही स्थित है यहां पर धर्म भी सत्य के आधार पर है और संसार भी सत्य के आधार पर है अतः सत्य से बड़ा दूसरा कोई भी धर्म नहीं है
4. लकड़ी पत्थर और लोहे की मूर्तियां की भावना और श्रद्धा से सेवा करने से भी मनुष्य सिद्धि प्राप्त कर लेता है यानी उस परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है श्रद्धा और भावना सब सिद्धियों का मूल धर्म है
5. बुद्धिहीन व्यक्ति को वेद शास्त्र भी बुद्धिमान नहीं बना सकते जैसे अंधे व्यक्ति को दर्पण दिखाने से कोई फायदा नहीं होता उसी तरह बुद्धिहीन व्यक्ति को वेद और शास्त्रों का अध्ययन करने से कोई फायदा नहीं होता
6. जो व्यक्ति विद्वानों के धन को गुरु के धन को हर लेता है तथा पर स्त्रियों के साथ पसंद करता है सभी प्राणियों में निर्वाह कर लेता है वह ब्राह्मण चांडाल कहलाता है
जो व्यक्ति किसी भी धर्म को अपना समझता है देवी देवताओं का धन विद्वानों की संपत्ति या गुरुओं की संपत्ति को अपना समझ कर उसका हरण कर लेता है दूसरी स्त्रियों के साथ संभोग को लालायित रहता है उसे Chandaal कहते हैं
7. ब्राह्मण एक वृक्ष है उसकी जड़ संध्या या पूजा है वेद उसकी शाखाएं हैं धर्म कर्म उसके पत्ते हैं अतः धात प्रयत्नपूर्वक जड़ की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि जड़ के कट जाने से उसके शाखा और पत्ते भी नहीं रहते
मनुष्य को अपने ज्ञान विज्ञान धन के विकास के साथ-साथ अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहिए क्योंकि जड़ों से हटने पर यह सभी शाखाएं व्यर्थ हो जाती हैं
8. आचार्य चाणक्य के अनुसार जो व्यक्ति लाख तेल नील कुमकुम मधु भी शराब व मांस बेचने वाला हो वह ब्राह्मण शुद्र है
आज के समय में इस में से अधिकांश वस्तुएं तो व्यापार का अंग हैं लेकिन शराब आदि वस्तुओं का व्यापार आज भी समाज में अच्छा नहीं माना जाता
9. जो व्यक्ति कुआ तालाब बावड़ी वाटिका तथा के वाले मंदिर आदि को तोड़ने तोड़ने नष्ट भ्रष्ट करने में निडर हो वह ब्राह्मण मलेक्ष है
इस समय चाणक्य बताते हैं कि सार्वजनिक उपयोग के स्थान कुआं तालाब आज वह मंदिर इन को तोड़ने वाले व्यक्ति सबसे नीच हैं
10. दया और करुणा पूर्ण मनुष्यों द्वारा जरूरतमंद ब्राह्मणों या गरीब व्यक्तियों को दिया गया दान वह उतना ही प्राप्त नहीं होता बल्कि उससे कई गुना जोड़कर परमात्मा देता है
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमें गरीब व जरूरतमंद को दान देना चाहिए ईश्वर हमें उस धन से कई गुना ज्यादा धन किसी अन्य रूप में प्रदान करता है
11. यह शरीर नाशवान है धन-संपत्ति भी चलायमान है और मौत कभी भी आ सकती है आता है मनुष्य को हमेशा धर्म का संचय करना चाहिए
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को सदा अच्छे आचरण से चलना चाहिए क्योंकि इस संसार में हर चीज गतिमान या परिवर्तनशील है अच्छा आचरण और धर्म ही हमेशा हमारे साथ रहता है
12. धर्म में तत्परता मुख्य में मधुरता और दान में उत्साही होना मित्रों के प्रति निष्कपट तथा गुरु के प्रति नम्र व्यवहार और अंतः करण में समुद्र के समान गहराई आचार में पवित्रता गुणों में रस शास्त्रों में विद्वान रूप में सुंदर और ईश्वर की भक्ति यह बातें सज्जन व्यक्तियों में दिखाई देती हैं।
13. धर्म से रहित व्यक्ति जीवित होते हुए भी मरे के समान होता है तथा धार्मिक मनुष्य मरने के बाद ही दीर्घजीवी रहता है उसकी कीर्ति सदा अमर रहती है
14. मनुष्य के जीवन में चार चीजें हैं धर्म अर्थ काम और मोक्ष जो व्यक्ति इन चार पुरुषार्थों में से एक भी ग्रहण नहीं करता उसका जन्म बकरी के गले में लटकने वाले स्तन जैसा ही होता है जिससे न तो दूध निकलता है और नहीं गले की शोभा होती है
15 . नष्ट हुआ धन दोबारा मिल सकता है मित्र से मित्रता टूटने पर दूसरा मित्र मिल सकता है पत्नी से अलग होने पर दूसरा विवाह हो सकता है तथा संपत्ति जाने पर उसे फिर से कमाया जा सकता है लेकिन मानव जन्म सिर्फ एक बार ही मिलता है यह दुर्लभ है अतः इसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए
16. धर्म संबंधी व्याख्यान शमशान भूमि में सुनने पर तथा रोग होने पर व्यक्ति की बुद्धि जिस तरह की हो जाती है अर्थात उसे जो अनुभव होते हैं वह वैसी ही बुद्धि अगर रहे तो मनुष्य संसार बंधन से छूट जाता है
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