Share- शेयर का हिंदी अर्थ होता है हिस्सा यानी कि किसी भी चीज़ में हिस्सेदारी जैसे किसी प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी या किसी उत्पादन में या किसी कंपनी के एसेट्स में हिस्सेदारी
उसी प्रकार शेयर मार्केट में भी शेयर का मतलब उस कंपनी में हिस्सेदारी ही है अगर आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं तो उस शेयर के अंकित मूल्य के बराबर उस कंपनी मैं आपकी हिस्सेदारी हो जाती है यानी कि कंपनी जब शेर निकालती है तब वह अपनी कुल संपदा की कीमत के हिसाब से अपने प्रति शेयर का अंकित मूल्य तय करती है उसके बाद उसे शेयर मार्केट में लोग खरीद लेते हैं तब उन लोगों को कंपनी में उतने ही प्रतिशत या जितने शेयर खरीदे हैं उनके हिसाब से ही हिस्सेदारी मिल जाती है लेकिन बाद में शेरों की कीमत मार्केट में बढ़ती-घटती रहती है जो उस कंपनी के वैल्यू से बढ़ने और घटने पर निर्भर करता है उस कंपनी की कीमत या लोगों की नजर में उसकी अहमियत कितनी बढ़िया घट रही है उस आधार पर शेरों की कीमत बढ़ती घटती रहती है
शेरों की यह कीमत ही कंपनी का मार्केट कैप निर्धारित करती है अर्थात उस समय कंपनी की कुल कीमत कितनी है यह शेयर की मार्केट में कीमत तथा कुल शेयरों के गुणनफल से प्राप्त हो जाती है
शेयर मार्केट में शेर से संबंधित और भी कई शब्दावली प्रचलित हैं जिनके बारे में मैं नीचे लिख रहा हूं
शेयर प्रमाण पत्र या अंश प्रमाण पत्र या शेयर सर्टिफिकेट - शेयर प्रमाणपत्र एक डॉक्यूमेंट है जो कंपनी द्वारा निकाला जाता है इसे एक तरह से आप स्टांप पेपर समझ सकते हैं जिस पर शेयर धारक का नाम वह उसका पूरा विवरण मौजूद होता है उसके साथ ही शेरों की संख्या और कंपनी की मोहर या कोई चिन्ह मौजूद रहता है जो यह प्रमाणित करता है कि उस व्यक्ति के पास कंपनी के इतने शेयर हैं शेयर के हस्तांतरण के समय इस शेयर सर्टिफिकेट की वैल्यू हो जाती है क्योंकि इसी आधार पर निर्धारित होता है कि वह कितने शेर किसी दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित कर सकता है
Equity share - इक्विटी शेयर किसी भी कंपनी के वह शेर हैं जो पूर्वाधिकार शेयर preference share नहीं है इक्विटी शेयर को ही शेयर मार्केट में एक तरह से शेयर कहा जाता है यह शेर ही वह तरल शेर हैं जिन्हें आराम से खरीदा या बेचा जाता है मार्केट से जब भी हम ब्रोकर के थ्रू कोई शेयर खरीदते या बेचते हैं वह शेयर इक्विटी शेयर ही होते हैं यदि कोई भी कंपनी जब कोई प्रॉफिट कम आती है तो सबसे पहले वह प्रॉफिट प्रेफरेंस शेयर धारकों को देती है उसके बाद जो प्रॉफिट बचता है वह इक्विटी शेयर धारकों में बांट दिया जाता है इक्विटी शेयर पर प्रॉफिट की दर निश्चित नहीं होती और इसके साथ ही कंपनी यदि उस वर्ष प्रॉफिट को पूर्वाधिकार शेयरधारक को पैसे बांटने के बाद अगर न बैठना चाहे तो इक्विटी शेयर धारक उस पर कोई क्लीन भी नहीं कर सकता कई बार कंपनी अच्छा खासा लाभ होने के बाद भी इक्विटी शेयर धारकों को उस वर्ष उस प्रॉफिट में हिस्सा अर्थात डिविडेंड नहीं देती है इक्विटी शेयर धारक कंपनी के मालिक होते हैं और कंपनी द्वारा निर्मित पूर्वाधिकार शेयरों और इसके लेनदारों को भुगतान करने के बाद जो भी लाभ या संचित राशि बचती है उस पर इक्विटी शेयर धारकों का अधिकार होता है जब भी कंपनी की कोई बड़ी मीटिंग में वोटिंग करनी होती है तब इन शेयरधारकों को कंपनी के निर्णय में वोटिंग करने का अधिकार होता है
पूर्वाधिकार शेयर Preference share -
प्रेफरेंस शेयर
प्रेफरेंस शेयर लाभांश के भुगतान या फिर कंपनी के बंद होने पर शेष पूंजी के पुनः भुगतान की स्थिति में साधारण शेरों के ऊपर अधिकार रखते हैं कंपनी को अगर कोई लाभ होता है तो उस लाभ पर सबसे पहले इन्हीं शेयरधारकों का अधिकार बनता है इन्हें डिविडेंड देने के बाद जो पैसा बचता है वह अन्य श्रेणी के शेयरधारकों में बांटा जाता है साथ ही इन शेयरों पर दिया जाने वाला डिविडेंड पहले से ही निश्चित दर पर किया जाता है और उसी के अनुरूप इन शेरों पर लाभांश का वितरण होता है इसीलिए इन शेयरों को के धारक इक्विटी शेयर के धारक से कम जोखिम उठाते हैं
बोनस शेयर क्या होता है
आपने अक्सर सुना होगा कि कंपनियां बोनस शेयर सु करती हैं जब कंपनी का बिजनेस चल रहा होता है और उसके पास प्रॉफिट में से जब बड़ी राशि इकट्ठी हो जाती है तब कंपनी इस पैसे को बोनस शेयर के रूप में जारी कर पूंजी में परिवर्तित करा लेती है बोनस शेयर कंपनी द्वारा जारी की गई इक्विटी या फिर फ्रेंड के शेयरधारकों को उनके पास जितने शेयर हैं उस के अनुपात में दे दिए जाते हैं
बोनस शेयर से निवेश करता को काफी लाभ होते हैं जिनकी व्याख्या निम्नलिखित है
बोनस शेयर सिर्फ उन्हीं लोगों को मिलते हैं जिनके पास पहले से कंपनी के शेयर हैं और बोनस शेयर उसी अनुपात में मिलते हैं जिस अनुपात में आपके पास पहले से शेयर हैं इसके लिए कंपनी को कुछ भी नहीं करना होता बस इसके लिए जिसके पास जितने शेयर हैं और उस पर जिस अनुपात में कंपनी बोनस शेयर दे रही है उसे वह सीधे दे दिए जाते हैं कंपनी अपने पास इकट्ठे हुए पैसे को शेयरों के रूप में परिवर्तित कर अपने इंवेस्टर्स को बांट देती है कंपनी इसलिए भी करती है क्योंकि अधिक डिविडेंड देने से कंपनी लोगों की तथा सरकार की नजर में आ जाती है जिससे सरकार कंपनी पर कई तरह के अंकुश लगा सकती है या हाई लेवल के टैक्स स्लैब में भी लोग आ सकते हैं इस प्रकार कंपनी डिविडेंड घोषित न करके बोनस शेयर जारी कर देती है
बोनस शेयर यदि किसी व्यक्ति को मिला है तो वह उसे बेच कर अपना पैसा बना सकता है लेकिन अगर डिविडेंड मिलता है तो वह पैसा डायरेक्ट पैसा ही अकाउंट में आता है साथ ही डिविडेंड की इनकम अधिकांश पर टैक्स फ्री होती है जिस वजह से डिविडेंड भी अपने आप में फायदे का सौदा होता है
किसी भी कंपनी के शेयर होल्डर्स को जब कंपनी बोनस शेयर जारी करती है तो इससे शेयरहोल्डर्स को फायदा तो होता ही है साथ ही कंपनी पर विश्वास हो जाता है किसका मैनेजमेंट अच्छा काम कर रहा है इस वजह से कंपनी के शेयरों के मूल्य में वृद्धि होती है
अगर कोई कंपनी बोनस शेयर जारी करती है तो इसका सीधा सीधा मतलब यह होता है कि कंपनी अच्छा काम कर रही है जिससे उसे अच्छा मुनाफा हो रहा है और वह अपने मुनाफे को शेयरों में तब्दील कर अपने शेयरधारकों को उसके लाभ के तौर पर दे रही है इससे शेयरधारकों में यह विश्वास भी जाता है कि उन्हें बिना कुछ किए ही शेयर मिल गए जिससे उनका कंपनी पर विश्वास और बढ़ जाता है जिससे कंपनी की वैल्यू बढ़ जाती है और उसके शेरों का मूल्य भी मार्केट में बढ़ने लगता है
बोनस शेयर जारी करने से शेयर धारकों को डिविडेंड भी अधिक मिलता है क्योंकि जितने अधिक शेयर होंगे उन पर दिया जाने वाला डिविडेंड भी उसी अनुपात में बढ़ जाता है इस वजह से शेयरधारक भी बोनस शेयर लेना पसंद करते हैं ऐसा भी देखा गया है कि बोनस शेयर जारी करने से कंपनी के शेयर के मूल्य में बहुत ज्यादा गिरावट नहीं देखी गई है अक्सर का शेरों का मूल्य इसके बाद बढ़ता ही है
BLUE CHIP SHARE - ब्लू चिप शेयर उन कंपनियों के शेयरों को माना जाता है जो कंपनियां काफी फेमस है आकार में बड़ी है उनका प्रबंधन कुशल है अच्छे लोगों द्वारा संचालित हैं तकनीकी विकसित हैं साथ ही लगातार विकास हो रहा है यह कंपनियां अपने शेयरधारकों को अच्छा अच्छा रिटर्न देती है इन कंपनियों में निवेश को सुरक्षित माना जाता है अर्थात इन कंपनियों के डूबने की संभावना बहुत कम मानी जाती है ऐसी कंपनियों को ब्लू चिप कंपनीज कहा जाता है
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