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बलात्कार

बलात्कार
लड़कियों ! वक़्त और तारीख़ मुकर्रर कर दो । आख़िर कब तक , कब तक खुद को यूँ कमज़ोर महसूस करोगी? कब तक इन दरिंदों को हँसने का मौका दोगी? आख़िर कब तक एक दरिंदा तुम्हें यूँ ही नोचता रहेगा ? कब तक मैं अख़बार में निर्भया को देखता रहूँगा ? चींखते हुए, चिल्लाते हुए , मदद की गुहार लगाते हुए , लाचारों के जैसे । आख़िर किस बात की मदद चाहिए तुम्हें ख़ुद की रक्षा के लिए , मुझे तो नहीं लगता कि कोई इतना कमज़ोर है कि वो अपना बचाओ न कर सके। हाथ हैं , नाख़ून है , दांत है अगर वो तुम्हें काट सकते हैं तो तुम भी उन्हें काट सकती हो । अगर वो तुम्हें मार सकते हैं तो हाथ तुम्हारे पास भी है । अगर हम नारी शक्ति की बात करते हैं तो क्यूँ करते हैं । नारियों के अंदर अगर लक्ष्मी, सरस्वती हैं तो काली, दुर्गा भी हैं और किससे गुहार लगा रही हो तुम सब । इस समाज से ये नामर्दो का समाज है यहाँ अब नपुंसक रहते हैं । ये लोग सोशल नेटवर्क पे बस तुम्हारी मौत पे मोमबत्ती जलाने के लिए आयेंगे , सेल्फी लेंगे , और घर जा के सो जायेंगे । उल्टा ऐसे लोग तुम्हें और ज्ञान देंगे, क्या ज़रूरत थी ऐसे कपड़े पहनने की, क्या ज़रूरत थी रात में घूमने की, क्या ज़रूरत थी उसके साथ बाहर जाने की। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता तुम ज़िन्दा रहो या मर जाओ । परिवार तक पे तुम भरोसा नहीं कर सकती हो। हो सकता है तुम्हारे घर का ही कोई आ के कह दे “जाने दो बेटा, घर की इज़्ज़त अब तुम्हारे हाथ में हैं ।”
कोई किसी की मदद नहीं करता है बिना स्वार्थ के । अगर जन्म मिला है तो मृत्यु भी होगी । क्यों उस मृत्यु का कारण एक दरिंदा बने ? क्यों मुझे ये ख़बर सुनने को नहीं मिलती की एक लड़की से बलात्कार करने आये युवक की उस लड़की ने जान ले ली । अगर वो भीड़ बन सकते हैं तो तुम भी बन सकती हो । सेल्फी के वक़्त अगर सब साथ रह सकते हो तो ऐसे वक़्त में भी साथ रहो जब तुम्हें एक दूसरे की ज़रूरत है । आदिशक्ति की पूजा होती है इस देश में जब आदिशक्ति ही कमज़ोर हो जायेगी अपनी रक्षा में तो बाक़ी लोगों का क्या होगा ?
अब वक़्त आ गया है । अगर मरना ही है तो लड़ के मरो , मार के मरो पर इस तरह हार के नहीं । सरकार से गुहार लगा कर आज तक किसे कुछ मिला है तो तुम्हें भी नहीं मिलेगा । यही सच है , कड़वा है ,पी लो । लड़कियों ! अगर चीखना है तो इतनी तेज़ चींखो की उस दरिंदे शरीर में जितने सुराख़ हैं हर जगह से खून रिसने लगे ।
अगर किसी को लगता है कि मैंने किसी की भावना को आहत किया है तो आईने के सामने खड़े हो कि ख़ुद को ज़ोर से थप्पड़ मार लो । हो सके तो अपने मुंह पे थूक लो । अगर किसी की रक्षा नहीं कर सकते तो उसके ऊपर ऊँगली उठाने का भी कोई हक़ नहीं है और समाज नहीं बचा है इस देश में बस जानवर बचे हैं । हम सब अंदर से सड़ चुके हैं जिन्हें कोई मतलब नहीं है किसी की भावना से, किसी की संवेदना से किसी भी चीज़ से ।
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